जोशीमठ भूधसाव मामले पर हाईकोर्ट सख्त, सरकार को दिए गए आदेश नहीं मानने का आरोप।

0
57

देहरादून – जोशीमठ में भू धंसाव मामले में पूर्व में दिए गए आदेश को गंभीरता से नहीं लेने पर हाईकोर्ट ने मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से कोर्ट में पेश होने के आदेश दिए हैं। मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी। मुख्य न्यायाधीश विपिन सांघी एवं न्यायमूर्ति आलोक कुमार वर्मा की खंडपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई।

 

कोर्ट ने जनवरी 2023 में सरकार को निर्देश दिए थे कि इसकी जांच के लिए सरकार इंडिपेंडेंट एक्सपर्ट सदस्यों की कमेटी गठित करेगी जिसमें पीयूष रौतेला और एमपीएस बिष्ट भी होंगे। सरकार ने अभी तक कमेटी गठित नहीं की और ना ही किसी एक्सपर्ट से सलाह ली।

पीसी तिवारी ने हाईकोर्ट में जनहित याचिका दायर कर कहा था कि प्रदेश सरकार जनता की समस्या को नजरंदाज कर रही है। उनके पुनर्वास के लिए रणनीति तैयार नहीं की गई है। किसी भी समय जोशीमठ का इलाका तबाह हो सकता है। प्रशासन ने करीब ऐसे छह सौ भवनों की चिह्नित किया है जिनमें दरारें आईं हैं। ये दरारें दिन प्रतिदिन बढ़ती ही जा रहीं हैं।

याचिका में कहा कि 1976 में मिश्रा कमेटी ने जोशीमठ को लेकर विस्तृत रिपोर्ट सरकार को दी थी जिसमें कहा गया था कि जोशीमठ शहर मिट्टी व रेत कंकड़ से बना है। यहां कोई मजबूत चट्टान नहीं है। कभी भी भू धंसाव हो सकता है। निर्माण कार्य करने से पहले इसकी जांच की जानी आवश्यक है। जोशीमठ के लोगों को जंगल पर निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्हें वैकल्पिक ऊर्जा के साधनों की व्यवस्था भी करनी चाहिए।

25 नवंबर 2010 को पीयूष रौतेला व एमपीएस बिष्ट ने एक शोध जारी कर कहा था कि सेलंग के पास एनटीपीसी टनल का निर्माण कर रही है जो अति संवेदनशील क्षेत्र है। टनल बनाते वक्त एनटीपीसी की टीबीएम फंस गई जिसकी वजह से पानी का मार्ग अवरुद्ध हो गया और सात सौ से आठ सौ लीटर प्रति सेकेंड के हिसाब से पानी ऊपर बहने लगा। यह पानी इतना अधिक बह रहा था कि इससे प्रतिदिन 2 से 3 लाख लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है।

याचिका में कहा गया था कि राज्य सरकार के पास आपदा से निपटने की सभी तैयारियां अधूरी हैं और सरकार के पास अब तक कोई ऐसा सिस्टम नहीं है जो आपदा आने से पहले उसकी सूचना दे। वहीं उत्तराखंड में 5600 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले यंत्र नहीं हैं और उत्तराखंड के ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट अभी तक काम नहीं कर रहे हैं। इससे बादल फटने जैसी घटनाओं की जानकारी नहीं मिल पाती। हाइड्रो प्रोजेक्ट टीम के कर्मचारियों की सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं है। कर्मचारियों को केवल सुरक्षा के नाम पर हेलमेट दिए गए हैं। कर्मचारियों को आपदा से निपटने के लिए कोई ट्रेनिंग तक नहीं दी गई।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here